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Saturday 25 October 2014

नीति और धर्म


नीति व धर्म

मैं अत्यंत आनंदित हूं कि आपसे इस संध्या अपने हृदय की थोड़ी सी बातें कर सकूंगा। अभी कहा गया कि यह समय अंधकार पूर्ण है और यह युग पतन का, भौतिकवाद का, और मेटेरियलिज्म का है। सबसे पहले मैं आपको मैं निवेदन कर दूं, यह बात अत्यंत गलत है, यह बात झूठी है। इस बात से यह भ्रम  पैदा होता है कि पहले के लोग प्रकापूर्ण थे और आज के लोग अंधकारपूर्ण हैं। इससे यह भ्रम पैदा  होता है कि पहले कि लोग अंधकार में नहीं थे और हम अंधकार में हैं। इस भ्रम के पैदा हो जाने के कुछ कारण हैं लेकिन यह बात सच नहीं है। हम अनैतिक हैं, और पहले के लोग नैतिक थे यह बात भी ठीक नहीं है।

अगर पहले के लोग नैतिक थे तो महावीर ने किसको समझाया कि हिंसा मत करो, चोरी मत करो, असत्य मत बोलो। बुध्द ने किसको उपदेश दिए। राम और कृष्ण किन लोगों को समझा रहे थे अच्छा होने के लिए? अगर लोग अच्छे थे तो ये उपदे व्यर्थ थे, झूठे थे। इनकी कोई जरूरत न थी। इस  दुनिया में, पुरानी सदियों में इतने बड़े बड़े शिक्षक हुए , ये क्यों पैदा हुए?

जहां अंधेरा होता है वहां दीयों की जरूरत पड़ती है। जहां भूलें होती हैं,वहां शिक्षक पैदा होते हैं। जहां  गल्तियां होती हैं वहां सुधारक का जन्म होता है। अगर पिछली सदियों में इतने बड़े सुधारक दुनिया में  पैदा हुए यह किस बात का सबूत है?

यह इस बात का सबूत है, उन दिनो के लोग भी हमारे जैसे लोग थे जैसे हम हैं वैसे ही वे लोग थे। वे भी चोरी करते थे और वे भी बेईमान थे और वे भी हिंसा करते थे और यु़ध्द करते थे। अगर वे  बेईमान नहीं थे तो ईमानदारी की शिक्षाएं किसके लिए थीं? अगर वे चोर नहीं थे तो चोरी न करने की बातें किसको समझाई जा रही थीं? वे हम जैसे ही लोग थे आदमी में कोई फर्क नहीं पड़ा है।

तो मैं आपसे कहना चाहूंगा, ये सदी अंधकार में है इससे यह मतलब न लें कि पहले के लोग प्रका में थे। आदमी आज तक अंधकार में ही रहा है। यह भ्रम इसलिए पैदा होता है कि
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